क्रांतिकारी योद्धा टंट्या भील (टंट्या मामा)

Kheem Singh Bhati
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क्रांतिकारी योद्धा टंट्या भील (टंट्या मामा)

टंट्या भील (टंट्या मामा)। टंट्या भील (टंट्या मामा) का जन्म 4 दिसंबर 1889 को मध्यप्रदेश के पश्चिम निमाड़ जिले के बिरदा गाँव में एक भील परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भावसिंह व माता का नाम जीवणी थे। टंट्या मामा भारतीय “रॉबिन हुड” के रूप में ख्‍यात हैं।

मात्र 25 साल की उम्र में ही टंट्या भील (टंट्या मामा) क्रांतिकारी हो गये थे उन्होंने अंग्रेज चापलूसों को समाप्त करने का संकल्प लिया और पहली कार्यवाही निमाड़ के पोखर गाँव में की। अंग्रेजों ने टंट्या, बिझुनिया और दीपिया को धोखे से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।

वहाँ से टंट्या भील (टंट्या मामा) अपने साथियों सहित भाग निकले और फिर अंग्रेजों के खिलाफ जनजातीय समाज के लोगों की छोटी -छोटी टोलियाँ बनाकर संघर्ष करते रहे और गरीब असहाय लोगों की सहायता करते रहे। जहाँ भी किसी ग़रीब जनजातीय भील, भिलाला व अन्य समाज की बहू बेटियों से जोर -जबरजस्ती होती वे उनकी लाज बचाने तुरंत वहाँ पहुँच जाते थे और अत्याचारियों को सजा देते थे।

इससे माताओं-बहिनों को यह विश्वास हो गया था कि यदि हम पर कोई अत्याचार होगा तो टंट्या हमें बचाने अवश्य आयेगा वे टंट्या को अपना भाई मानती थीं, ऐसा भाई जो हर मुसीबत में उनकी सहायता करता है।

टंट्या भील और टंट्या मामा के नाम से जाना-पहिचाना जाने लगा।

इसी कारण टंट्या को क्षेत्र में टंट्या भील और टंट्या मामा के नाम से जाना-पहिचाना जाने लगा। टंट्या सबका मामा है, वह सबकी रक्षा करता है, वह तो देवता है, हमारी हर समय रक्षा करता है। वह सबका लोकदेवता बन गया था। इसीलिए आज भी निमाड़ टंट्या भील (टंट्या मामा) को लोकदेवता के नाम से पूजा जाता है।

टंट्या भील (टंट्या मामा) का प्रभाव जनजाति समाज के मानस पर इतना गहरा है कि आज हर भील जनजाति समाज के भाई अपने आपको मामा कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। वे गर्व करते हैं कि हम टंट्या मामा के वंशज हैं।

टंट्या भील (टंट्या मामा) के मुख्य साथी बिझुरिया अंग्रेजों ने फाँसी पर लटकाया।

1880 में टंट्या मामा के दो मुख्य साथियों दीपिया और बिझुरिया को गिरफ्तार कर जबलपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। दीपिया जेल से भाग गया, बौखलाये अंग्रेजों ने बिझुरिया को सरेआम एक पेड़ से फाँसी से लटका दिया और लाश को उसी तरह छोड़ दिया गया ताकि खौफ फैले। पर क्रांति रुकी नहीं, चलती रही, बाद में जब दीपिया भी पकड़ में आया तो उसे कालापानी की सजा दी गई।

अंग्रेजों ने क्रांतिवीर टंट्या मामा को भी धोखे से पकड़कर जेल में डाल दिया और 4 दिसम्बर 1889 में जबलपुर सेंट्रल जेल में उन्हें फाँसी दी गई। टंट्या मामा के बलिदान ने सम्पूर्ण संपूर्ण भील व अन्य जनजाति समाज के दिलों में उनके प्रति अगाध श्रद्धा भर दी और वे सबके भगवान हो गये।

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