13- मोहिनी अवतार (भगवान विष्णु के 24 अवतार)
समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हुआ। देवताओं ने कहा हम ले लें, दैत्यों ने कहा हम ले लें । इसी खींचातानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया।
सारे दैत्य व देवता भी उसके पीछे भागे। असुरों व देवताओं में भयंकर मार-काट मच गई।
देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया। भगवान ने मोहिनी रूप में सबको मोहित कर लिया।
मोहिनी ने देवताओं व असुरों की बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए तो मैं बारी-बारी से देवता व असुरों को अमृत का पान करा दूंगी। दोनों मान गए । देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए।
फिर मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु ने मधुर गान गाते हुए तथा नृत्य करते हुए देवताओं व असुरों को अमृत पान कराना प्रारंभ किया। वास्तविकता में मोहिनी अमृत पान तो सिर्फ देवताओं को ही करा रही थी, जबकि असुर समझ रहे थे कि वे भी अमृत पी रहे हैं ।
इस प्रकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं का भला किया।