जयपुर। नरेश मीणा की जमानत याचिका राजस्थान हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। देवली-उनियारा विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान हुए थप्पड़ कांड में फंसे निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा को राहत नहीं मिली। बुधवार को जस्टिस अनिल उपमन की अदालत ने उनकी जमानत याचिका को नामंजूर कर दिया।
याचिका खारिज होने के बाद नरेश मीणा के वकील डॉ. महेश शर्मा ने हाईकोर्ट से इसे वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। इसके चलते याचिका को मेरिट के आधार पर खारिज नहीं मानते हुए वापस लिया हुआ माना जाएगा।
सरकारी पक्ष का तर्क और हाईकोर्ट का फैसला
सरकारी वकील नरेंद्र धाकड़ ने कोर्ट में दलील दी कि नरेश मीणा ने चुनाव ड्यूटी पर तैनात एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मारा था। उन्होंने कहा, “यदि एक जनप्रतिनिधि ही इस तरह का कृत्य करेगा तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा।”
वहीं, नरेश मीणा के वकील ने तर्क दिया कि वह लंबे समय से जेल में हैं और यह एक मामूली मामला है, जिसमें जमानत दी जानी चाहिए। हालांकि, हाईकोर्ट ने सरकारी पक्ष की दलील को स्वीकार करते हुए नरेश मीणा की जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान टोंक जिले के समरावता गांव में ग्रामीणों ने वोटिंग का बहिष्कार किया था। निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ग्रामीणों के समर्थन में धरने पर बैठे थे और उन्होंने अधिकारियों पर जबरन मतदान कराने का आरोप लगाया था। इसी दौरान नरेश मीणा पोलिंग बूथ पर पहुंचे और गुस्से में एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मार दिया।
हिंसा और आगजनी का मामला
थप्पड़ कांड के बाद नरेश मीणा धरने पर लौट गए, लेकिन इसी बीच प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई। पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया, जिससे उनके समर्थक भड़क गए। इसके बाद बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस हिरासत से नरेश मीणा को जबरन छुड़ा लिया। इस दौरान लाठीचार्ज हुआ और गांव में कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया।
पहले भी हो चुकी है जमानत याचिका खारिज
समरावता हिंसा मामले में भी नरेश मीणा की जमानत याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है। 12 फरवरी को हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि चुनाव प्रक्रिया बाधित करने और हिंसा भड़काने वाले व्यक्ति को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि यदि नरेश मीणा ने सोशल मीडिया के माध्यम से समर्थकों को नहीं उकसाया होता, तो यह हिंसा नहीं होती। अदालत ने कहा कि ऐसे अपराधियों को जमानत के लाभ से वंचित रखना ही सही है।
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