जैसलमेर के वन क्षेत्रों में बिछी हाइटेंशन लाइनों से काल के ग्रास बन रहे हैं वन्य जीव और प्रवासी पक्षी

Sabal SIngh Bhati
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जैसलमेर के वन क्षेत्रों में बिछी हाइटेंशन लाइनों से काल के ग्रास बन रहे हैं वन्य जीव और प्रवासी पक्षी

जैसलमेर। जैसलमेर जिले को आज विद्युत उत्पादन के क्षैत्र में अग्रणी माना जा रहा हैं मगर इस अंधाधुंध विकास की जो कीमत चुकाई जा रही हैं वो अपूरणीय हैं, जिसका परिमाण हैं वन्य जीवों और प्रवासी पक्षियों की अकाल मृत्यु, जिसका सीधा सा असर आने वाले सालों में इको सिस्टम पर पड़ेगा तथा कई वन्य जीव सिर्फ किताबों में देखने को मिलेंगे।

विकास के नाम पर उन वनस्पतियों का अंधाधुध दोहन किया जा रहा हैं जो वन्य जीवों का आशियाना माना जाता हैं। कंपनियों द्वारा स्थानीय वन संपदाओं जैसे केर, बैर, जाल और अन्य झाड़ियां साथ ही राज्य वृक्ष खेजड़ी की अंधाधुध कटाई कर वन्य जीवों के आशियाने को नष्ट किया गया हैं। जिससे मजबूर होकर वन्य जीवों को भटककर आबादी क्षेत्रों का रुख करना पड़ता हैं जहां वे सड़कों पर हादसों और आबादी में कुत्तों के शिकार बन जाते हैं।

यही स्थिति पक्षियों की हैं। देगराय ओरण और उसके आस पास स्थित गांवों में कंपनियों ने उच्च क्षमता की तारों का जाल सा बिछा दिया हैं जिसके कारण इस क्षैत्र में प्रतिदिन कोई न कोई स्थानीय और प्रवासी पक्षी जिसमे कुछ संरक्षित श्रेणी के भी पक्षी होते हैं, वो भी इन करंट की चपेट में आकर अकाल मृत्य का ग्रास हो जाता हैं।

जैसलमेर में पिछले 10 दिन से लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं मगर संबंधित विभाग ने मौन साध रखा हैं। जिस विभाग पर इन वन्य जीवों और पक्षियों के संरक्षण की जिम्मेदारी हैं वो विभाग केवल खाना पूर्ति में लगा हुआ नजर आ रहा हैं। चूंकि इस क्षैत्र में वन्यजीव प्रेमी सक्रिय हैं इसलिए यहां की घटनाएं सामने आ जाती हैं तो जैसलमेर के अन्य इलाकों में जहां वृहद स्तर पर तारों के जाल बुन हुए हैं वहां की क्या स्थिति होगी इसकी कल्पना ही की जा सकती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने भी बिजली की तारों को भूमिगत करने की दी थी सलाह

वन्यजीव संरक्षणवादी एमके रणजीतसिंह झाला ने बिजली कंपनियों द्वारा जैसलमेर के पवित्र उपवनों में भूमिगत तार बिछाने के लिए 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। याचिका जीआईबी और लेसर फ्लोरिकन को विलुप्त होने से बचाने के लिए थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने 19 अप्रैल, 2021 को राजस्थान और गुजरात राज्यों में बिजली कंपनियों को हाई-टेंशन बिजली लाइनों को भूमिगत करने का आदेश दिया था ताकि बड़े पक्षी जाल में न फंसें। कार्य की व्यवहार्यता देखने के लिए एक तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति भी बनाई गई थी।

समिति में केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के वैज्ञानिक राहुल रावत, भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक सुतीर्था दत्ता और कॉर्बेट फाउंडेशन के उप निदेशक देवेश गढ़वी शामिल थे।

जैसलमेर में एक और संरक्षित पक्षी हाई वोल्टेज तारों से टकराकर हुआ घायल

जैसलमेर जिले की फतेहगढ़ तहसील में स्थित श्री देगराय मन्दिर की ओरण के अंदर से गुजर रही बिजली हाईटेंशन लाइनों से टकराकर शुक्रवार को इजिप्शियन गिद्ध का बच्चा घायल हो गया। जिसे ओरण में मौजूद चरवाहे भूराराम देवासी की सूचना पर पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह भाटी ने पहुँचकर वन विभाग को सूचना देकर रेस्क्यू करवाया।

सुमेर सिंह के साथ मौके पर पहुँचे पर्यावरण प्रेमी पार्थ जगाणी व नरपत सिंह राजपुरोहित ने बताया कि श्री देगराय ओरण का क्षेत्र वन्यजीवों का मुख्य विचरण क्षेत्र है, परन्तु फिर भी यहाँ बिजली तार लगे हुए हैं, ओरण और उसके आसपास से बिजली तारों को जब तक भूमिगत नहीं किया जायेगा पक्षियों के इनसे टकराकर व करंट लगकर मरने का सिलसिला नहीं रुकेगा।

पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमी सुमेरसिंह सांवता ने बताया कि फतेहगढ़ क्षैत्र में प्रतिदिन कोई न कोई पक्षी हाई वोल्टेज तारों से टकराकर अकाल मौत का ग्रास बन रहा हैं।

सुमेरसिंह ने आगे बताया की आज भी मुझे बुखार होने के बावजूद घायल पक्षी का रेस्क्यू किया गया। इन वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए कई बार वन विभाग से भी निवेदन किया गया कि इन तारों को भुमिगत करवाने की प्रक्रिया अपनाई जाए ताकि वन्य पशु और पक्षी सुरक्षित विचरण कर सके। क्योंकि पारिस्थितिकी बचेगी तभी मानव जीवन बचेगा अन्यथा पूरा इको सिस्टम ही गड़बड़ा जायेगा।

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