महात्मा गाँधी की राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की योजना
सन् 1918 में महायुद्ध समाप्त हो चुका था। इस युद्ध में भारतीयों ने पूरी तरह से अंग्रेजों का साथ दिया था। उन्होंने भारतीयों को आश्वासन दिया था कि यदि भारतीय युद्ध में अंग्रेजों का साथ देंगे तो युद्ध समाप्ति के बाद भारत को आजादी दे दी जायेगी। लेकिन अंग्रेज अपने वायदे से मुकर गये। अंग्रेजी सरकार ने भारत में रोलेट कानून लागू कर दिया, जिससे भारतीय चौंक गये। उन दिनों गाँधीजी अहमदाबाद में थे। वहाँ श्री वल्लभभाई पटेल से आपकी प्रतिदिन भेंट होती थी।
गाँधीजी ने उनके सामने विचार रखा कि इस कानून का विरोध में सत्याग्रह करके करूँगा। शीघ्र ही सत्याग्रह का प्रारूप-पत्र तैयार किया गया जिस पर गाँधीजी, बल्लभभाई पटेल और श्रीमती सरोजनी नायडू के हस्ताक्षर हुए। सत्याग्रह सभा की भी स्थापना हुई। गाँधीजी इसके अध्यक्ष बने। रोलेट बिल के सभा में पेश होने के बाद गाँधीजी वायसराय से मिले लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
आपने इसके विरुद्ध आन्दोलन शुरू करने के लिए भारत भ्रमण करना आरम्भ कर दिया। मद्रास पहुँचे तो श्री राजगोपालाचारी से भेंट हुई। गाँधीजी 19 मार्च, सन् 1919 को श्री राजगोपालाचारी के सामने सत्याग्रह की योजना को ठोस रूप दिया। मद्रास में ही सूचना मिली कि रोलेट बिल कानून बन गया है। गाँधीजी ने श्री राजगोपालाचारी से कहा, “हमें सम्पूर्ण भारत में हड़ताल करनी चाहिए।”
गोपालाचारी को यह योजना पसन्द आई। विचार-विमर्श के बाद पहले 30% मार्च, सन् 1919 का दिन हड़ताल के लिए निश्चित किया गया। मगर बाद में किन्हीं अपरिहार्य कारणों से परिवर्तन करके 6 अप्रैल, सन् 1919 का दिन घोषित किया गया।
दिल्ली में यह हड़ताल 6 अप्रैल के बजाय 30 मार्च को ही हो गई। यहाँ पर आर्यसमाज के प्रमुख नेता स्वामी श्रद्धानन्द ने दिल्ली की जामा मस्जिद पर एक सभा बुलाई, जहाँ हजारों लोगों ने सभा में हिस्सा लिया। उन्हें तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने गोली चला दी जिसमें 9 लोग मारे गये, जिसमें पाँच हिन्दू और चार मुसलमान थे। स्वामी श्रद्धानन्द का भाषण चलता रहा। यहाँ पर उन्होंने एक विशाल जनसभा को सम्बोधित किया था।
इसके बाद देशव्यापी हड़ताल आरम्भ हो गयी। पूरा राष्ट्र आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा था। सारा देश गाँधीजी के पीछे चल दिया। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाँधीजी को महात्मा गाँधी कहकर सम्बोधित किया।
भारतीय राजनीति की पूरी बागडोर गाँधीजी के हाथ में आ गई। लाहौर, अमृतसर, अहमदाबाद, दिल्ली तथा बम्बई आदि स्थानों पर भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने गोली चलाई जिसमें हजारों लोग मारे गये तथा घायल हुए। बम्बई के सभा में आपने भी भाषण दिया। उसी दिन आपने ‘सविनय अवज्ञा भंग’ की घोषणा की।
गोलीकाण्ड की सूचना पर गाँधीजी 7 अप्रैल को दिल्ली के लिए चल पड़े लेकिन दिल्ली पहुँचने से पहले ही उन्हें पलवल स्टेशन पर उतार कर मथुरा की ओर जाने वाली गाड़ी में बैठा दिया गया। बाद में आपको फिर बम्बई वापस भेज दिया गया। बम्बई पहुँचकर आपको ज्ञात हुआ कि अहमदाबाद में भी खूब-खराबा हुआ था। आप अहमदाबाद आ पहुॅचे। वहाँ मार्शल-ला लगा था। इस रक्तपात का प्रायश्चित करने के लिए गांधीजी ने तीन दिन का उपवास किया।
आपने सत्याग्रह बन्द करने का निश्चय किया। आपने सत्याग्रह शुरू करने को ‘हिमालय जैसी बड़ी भूल’ स्वीकार किया है। आपने आत्मकथा में लिखा है- “उस समय सविनय भंग का न्योता देने की भूल मुझे हिमालय जैसी लगी। मुझे जान पड़ा कि मैंने सामने की दीवार को देखें बिना ही आँखें बन्द कर सरपट दौड़ लगाई है।”