महात्मा गाँधी – जन्म से मृत्यु तक | Mahatma Gandhi – Biography

Kheem Singh Bhati
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महात्मा गाँधी और जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड

10 अप्रैल, सन् 1919 को पुलिस ने पंजाब कांग्रेस के डॉक्टर सतपाल और डॉक्टर कुबलू को अमृतसर में गिरफ्तार कर लिया। इससे वहाँ रोष फैल गया। लोग अपना रोष प्रकट करने के लिए डिप्टी कमिश्नर के निवास की ओर बढ़े तो पुलिस ने उन पर गोलियाँ चला दी। इससे जनता भड़क उठी और उसने पाँच-छह अंग्रेजी को मार डाला। इस पर जनरल डायर ने कहा था- “मैं पंजाब की जनता को सबक सिखाऊंगा।”

और उसने 13 अप्रैल वैसाखी के त्योहार के दिन अपने घिनौने इरादे कोवीभत्स ढंग से पूरा कर दिखाया। अंग्रेजों के अत्याचारों की निन्दा करने के लिए लोग अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए थे। इनमें स्त्री-पुरुष, वृद्ध-बच्चे सभी थे। उन निहत्थे लोगों से अंग्रेज सिपाहियों ने अत्यन्त क्रूर बर्ताव किया। उस बाग के चारों ओर दीवारें थी। बाहर जाने के लिए एक छोटा-सा दरवाजा था।

सिपाहियों ने एकत्रित लोगों पर निर्दयता से गोलियाँ चलाई। लाशों पर लाश गिरने लगी। अनेक लोग घायल हुए और अनेक मौत के घाट उतार दिये गये। पूरे पंजाब में मार्शल-ला लगा दिया गया। देशभक्त नागरिकों पर गोलियाँ चलाकर मौत के घाट उतार दिया गया और हजारों बेकसूरों को जेलों में डाल दिया गया।

अंग्रेजों द्वारा इस प्रकार बीभत्स रूप देखकर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का हृदय काँप उठा। उन्होंने सरकार के अत्याचारों का विरोध करते हुए 30 मई, सन् 1919 को ‘सर’ की उपाधि वापस कर दी ।

गाँधीजी ने जब इस काण्ड को सुना तो पंजाब आकर अपनी आँखों से सब देखना चाहते थे। लेकिन सरकार ने पंजाब आने से रोक दिया। अन्त में एक दिन अक्टूबर, 1919 में उन्हें इजाजत मिल गई।

पंजाब आकर आप स्वामी श्रद्धानन्द, श्री मोतीलाल नेहरू और पण्डित मदनमोहन मालवीय से मिले। लोगों ने इस काण्ड की जाँच के लिए कांग्रेस की ओर से जाँच-समिति गठित करने का फैसला किया। इस समिति का सारा बोझ महात्मा गाँधी पर ही पड़ा।

उन्होंने पंजाब के ग्रामों में भ्रमण किया। अंग्रेजों के करतूतों के बारे में जानकारी प्राप्त की। इस प्रकार भ्रमण कर रिपोर्ट तैयार की। जाँच-समिति की रिपोर्ट देखकर तिलक, मालवीय और मोतीलाल को उनकी योग्यता पर पूरा विश्वास हो गया।

उन्होंने कांग्रेस का पूरा भार गाँधीजी को सुपुर्द कर दिया। कांग्रेस का नया विधान बनाने का काम गाँधीजी ने अपने ऊपर ले लिया। गाँधीजी ने एक नया विधान बनाया। उस विधान पर देश को अभिमान है। गाँधीजी के शब्दों में- “यह कार्य करने के साथ ही मैंने कांग्रेस में सचमुच प्रवेश किया।”

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