महात्मा गाँधी – जन्म से मृत्यु तक | Mahatma Gandhi – Biography

Kheem Singh Bhati
71 Min Read

महात्मा गाँधी का असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव

सितम्बर, 1920 में कलकत्ता कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ। उसमें गाँधीजी ने असहयोग का प्रस्ताव रखा, जिसे कांग्रेसी नेताओं द्वारा स्वीकार कर लिया गया। असहयोग आन्दोलन का तात्पर्य था कि अंग्रेजी सरकार से असहयोग करके उसे आजादी देने के लिए विवश करना।

देश भर में असहयोग आन्दोलन आरम्भ हो गया। विद्यार्थी, वकील, अध्यापक सभी खुलकर सामने आ गए। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूलों का त्याग किया। हजारों वकील वकालत छोड़कर देश सेवक बन गए। सरकारी कर्मचारी घरों में बैठ गये।

किसानों में भी जागृति आ गई। उन्होंने सरकार को लगान न देने का निश्चय किया। जगह-जगह सरकार से जनता की मुठभेड़ें हुई। गोरखपुर जिले के चौरी चौरा गाँव में भयंकर उत्पात हो गया। सिपाहियों के अमानुषिक अत्याचारों से तंग आकर लोगों ने दो-चार सिपाहियों को जिन्दा जला दिया।

इस प्रकार जनता द्वारा हिंसा पर उतर जाने पर गाँधीजी बहुत दुःखी हुए। उन्होंने तुरन्त सत्याग्रह स्थगित करने की घोषणा कर दी। इस घोषणा से हजारों देशभक्तों को घोर निराशा हुई। हजारों विद्यार्थी स्कूल-कॉलेज छोड़कर बाहर निकल आये थे। उनका भविष्य अन्धकारमय हो गया। जेल में बन्द कांग्रेस के नेता पण्डित मोतीलाल नेहरू, डी.बी. चितरंजन दास और लाला लाजपत राय आदि ने गाँधीजी को पत्र लिखकर विरोध जताया।

लेकिन गाँधीजी अपने निश्चय पर अटल रहे। सत्याग्रह स्थगित हो गया था, किन्तु गाँधीजी ने सरकार के विरुद्ध लड़ाई जारी रखी। गाँधीजी रचनात्मक कार्यों में लग गये और जनता को अगली लड़ाई के लिए तैयार करने लगे। सरकार की चिन्ता बढ़ गई। पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और विद्रोह करने के आरोप में उन्हें छह वर्ष के कारावास की सजा मिली।

यह गाँधीजी की भारतवर्ष में पहली जेल यात्रा थी। गाँधीजी के जेल जाने के बाद अंग्रेज सरकार ने हिन्दू-मुसलमानों के बीच फूट के बीज बोने प्रारम्भ कर दिये। परिणामस्वरूप जगह-जगह देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। जेल में इन उपद्रवों को सुनकर गाँधीजी बहुत दुःखी हुए।

जेल में गाँधीजी का स्वास्थ्य खराब हो गया। आपके पेट में भयंकर फोड़ा निकल आया था। 13 जनवरी, 1924 को पूना के एक अस्पताल में उनका सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया गया। सरकार ने उनके स्वास्थ्य को देखते हुए समय से पहले ही उन्हें 5 फरवरी, 1924 को जेल से रिहा कर दिया। देश में साम्प्रदायिक उपद्रवों की आँधी चल रही थी। हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे। गाँधीजी के सब प्रयत्न निष्फल हो गये।

गाँधीजी शीघ्र दिल्ली पहुँचे। गाँधीजी ने कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना के निवास पर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए 18 सितम्बर, 1924 को इक्कीस दिन के अनशन की घोषणा कर दी। दोनों पक्षों के नेता आये और दोनों ने एकता स्थापित करने का विश्वास दिलाया।

इस बीच गाँधीजी ने देश-भ्रमण करके रचनात्मक कार्य करके देश को संगठित करने का फैसला किया। रचनात्मक कार्यों में गाँधीजी ने सितम्बर, 1925 में अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना की। यहीं से भारत में चरखे का प्रसार शुरू हुआ। गाँधीजी स्वयं अपने हाथ से सूत कातते थे।

उन्होंने पूरी तरह से स्वदेशी को धारण कर लिया था। ‘हरिजन सेवा’ गाँधीजी का दूसरा रचनात्मक कार्य था। इसके लिए इन्होंने ‘हरिजन सेवा संघ की स्थापना की। गाँधीजी अस्पृश्यों को ‘हरिजन’ कहते थे।

उन्होंने हरिजन सेवक, हरिजन बन्धु और हरिजन तीन पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने शपथ ली कि जब तक अस्पृश्यता का निवारण नहीं होगा तब तक साबरमती आश्रम में प्रवेश नहीं करूँगा। वे वर्धा के पास सेवाग्राम आश्रम की स्थापना कर वहीं रहने लगे।

कांग्रेस की लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की गई। अंग्रेजों के भड़काने से मुस्लिम नेता भी कांग्रेस के विरोध में खड़े हो गये। इनमें प्रमुख रूप से, कभी कांग्रेस की मद्रास अधिवेशन में हिन्दू-मुस्लिम एकता की पुरजोर समर्थन करने वाला मोहम्मद अली जिन्ना और शौकत अली थे। 26 जनवरी, सन् 1930 में आजादी का झण्डा फहराया गया। यह भारत को पूर्ण स्वाधीनता के द्योतक के रूप में फहराया गया था।

TAGGED:
Share This Article
kheem singh Bhati is a author of niharika times web portal, join me on facebook - https://www.facebook.com/ksbmr