त्रेतायुग का एकमात्र किला – बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)

Kheem Singh Bhati
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बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़) । बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़) पूर्वी राजस्थान के पर्वतीय दुर्गों में बयाना के किले का अपना विशेष महत्त्व है। भरतपुर से लगभग 48 कि०मी० दक्षिण में अवस्थित यह एक प्राचीन दुर्ग है। बयाना दुर्ग का निर्माता महाराजा विजयपाल मथुरा के यादव राजवंश से था। मैदान में स्थित अपनी राजधानी मथुरा को मुस्लिम आक्रमणों से असुरक्षित जान उसने निकट की मानी पहाड़ी पर 1040 ई० के लगभग एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।

अपने निर्माता के नाम पर यह किला विजय मन्दिर गढ़ कहलाया। इस प्रदेश की प्राचीनता पर प्रकाश डालते हुए डॉ० दशरथ शर्मा ने लिखा है कि बयाना का प्राचीन नाम ‘भादानक’ था। बयाना उसका अपभ्रष्ट है। भादानक प्राचीन भारत का एक प्रमुख जनपद था जिसका विस्तार वर्तमान भरतपुर, कामां और समीपवर्ती प्रदेश तक था। स्कन्द पुराण में भादानक देश का एक विशाल राज्य के रूप में उल्लेख हुआ है।

विक्रम संवत 1226 ई० के बिजौलिया शिलालेख में अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ द्वारा भादानकपति को पराजित करने का प्रसंग आया है। श्रीपथ भादानक देश का प्रमुख नगर और सम्भवतः उसकी राजधानी थी। राजशेखर विरचित काव्य मीमांसा से पता चलता है कि भादानक वासी अपभ्रंश भाषा बोलते थे। यथा- Obviously it is Bhadanaka, the Apabhramsa form of which is Bhayanaya, that has turned into Bayana of Muslim writers.

मध्ययुग के मुस्लिम ग्रन्थों में इसके बयाना और सुलतानकोट दोनों नाम मिलते बयाना के इस प्राचीन दुर्ग पर समय-समय पर विभिन्न राजवंशों के अलावा विविध मुस्लिम वंशों- गोरी, गुलाम, तुगलक, लोदी, अफगान तथा मुगलों का अधिकार रहा है। तत्पश्चात् जाटों ने भी इस दुर्ग पर अपनी विजय-वैजयन्ती फहरायी । ज्ञात इतिहास के अनुसार बयाना दुर्ग के निर्माता महाराजा विजयपाल ने लगभग 53 वर्षों तक शासन किया। यह एक शक्तिशाली शासक था जिसे शिलालेखों में महाराधिराज परम भट्टारक’ के विरुद से अभिहित किया गया है।

त्रेतायुग का एकमात्र किला – बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)

करौली की ख्यात तथा जनश्रुति के अनुसार उसने गजनी की तरफ से होने वाले मुस्लिम आक्रमणों का लम्बे अरसे तक सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया परन्तु अन्ततः निरन्तर होने वाले आक्रमणों के समक्ष अपने को असहाय पा उसने शिवमन्दिर में जा अपना मस्तक काट कर देवता को चढ़ा दिया । (कमल पूजा) विजयपाल रासो के अनुसार महाराजा विजयपाल ने वि० संवत 1102 में कंधार के यवन शासक बूबकशाह से युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। यथा –

गयारह सौ दहोतरा, फाग तीज रविवार ।
विजयपाल रण जूझियो, बूबक साह कंधार ॥

कविराजा श्यामलदास-कृत वीर विनोद के अनुसार गजनी के मुसलमानों ने बयाना के किले को घेर कर उसमें बारूद का एक बड़ा विस्फोट किया जिससे विजयपाल की रानियों की मृत्यु हो गयी – “धोखे से रानियों का बारूद से उड़ जाना इस राजा की जिन्दगी के खात्मे का सबब हुआ। यह बर्बादी बयाना के किले में विक्रमी 1103 (1046) में विजयपाल के मरने के बाद हुई।”

इस प्रकार बयाना के किले पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। इधर विजयपाल के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी तवनपाल या त्रिभुवनपाल ने बारह तक अज्ञातवास में रहने के बाद बयाना से लगभग 22 कि०मी० पर एक नया दुर्ग बनवाया जो उसके नाम पर तवनगढ़ कहलाया।

तवनपाल एक वीर और प्रतापी शासक था। 1196 ई० के लगभग मुहम्मद गौरी ने यादव राज्य पर जबर्दस्त आक्रमण किया तथा यहाँ के शासक कंवरपाल को पराजित कर बयाना और तवनगढ़ दोनों पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात इस दुर्ग पर इल्तुतमिश, बलवन आदि गुलामवंशीय सुलतानों का अधिकार रहा।

बलवन के समय नुसरतखाँ यहाँ का गवर्नर था। 1348 ई० के लगभग यादववंशीय अर्जुनपाल ने बयाना से मुस्लिम आधिपत्य समाप्त कर उस पर अपना अधिकार कर लिया। तदनन्तर बयाना फीरोज तुगलक के अधिकार में रहा जो अपनी दक्षिण की मुहिम पर जाते समय कई महीनों तक इस दुर्ग में रहा।

त्रेतायुग का एकमात्र किला - बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)
त्रेतायुग का एकमात्र किला – बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)

इसके बाद बयाना पर लम्बे अरसे तक लोदी सुलतानों तथा मुगल शासकों का नियन्त्रण रहा। यों इस दुर्ग ने इतिहास को अनेक करवटें लेते देखा है। बयाना दुर्ग मार्च 1527 ई० के इतिहास प्रसिद्ध खानवा युद्ध से पहले ना-ना महत्त्वपूर्ण घटनाओं का केन्द्र रहा था। राणा सांगा ने खानवा युद्ध से पहले बयाना के दुर्ग को घेरा था। बाबर का बहनोई मेंहदी ख्वाजा जो बयाना का दुर्गाध्यक्ष था.

राणा सांगा का मुकाबला नहीं कर सका तथा बयाना पर राणा का अधिकार हो गया। हुमायूँ के शासन काल में उसके चचेरे भाई मुहम्मद जमान मिर्जा को इसी बयाना दुर्ग में कैद रखा गया। शेरशाह सूरी और उसके पुत्र इस्लामशाह के अधिकार में रहने के पश्चात 1557 ई० में इस दुर्ग पर मुगल सम्राट अकबर का अधिकार हो गया तथा फिर वर्षों तक इस पर मुगलों का वर्चस्व रहा। मुगल साम्राज्य के पराभव काल में 18वीं शताब्दी ई० के लगभग बयाना पर जाटों ने अधिकार कर लिया।

इस तरह बयाना का किला अनेक राजवंशों के उत्थान और पतन का मूक साक्षी है। बयाना का ऐतिहासिक के साथ-साथ व्यापारिक महत्त्व भी था। प्राचीन काल में (उत्तर और दक्षिण भारत के बीच) आवागमन के मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण इसका बहुत सामरिक महत्त्व था।

बयाना और उसका निकटवर्ती प्रदेश मध्ययुग में उत्कृष्ट कोटि की नील के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था जिसे खरीदने के लिए यहाँ देशी-विदेशी व्यापारियों का जमघट लगा रहता था। एक डच यात्री फ्रेंकोइस पैल्सर्ट ने जो 1618 ई० में भारत आया था बयाना में नील की खेती और व्यापार के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। जैसाकि कह आये हैं बयाना की प्राचीनता गुप्तकाल बल्कि उससे भी पहले तक जाती है।

इतिहासकारों की धारणा है कि यादववंशीय शासक विजयपाल ने यहाँ पहले से विद्यमान प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेषों पर ही नये किले का निर्माण करवाया था। यहाँ से उपलब्ध 300 ई० के एक शिलालेख से पता चलता है कि यह यौधेय गण के अधीन प्रशासन का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। बयाना दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से बनी एक ऊँची लाट या स्तम्भ है जो भीमलाट के नाम से प्रसिद्ध है।

लगभग 26 फीट चौड़ी इस लाट पर उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार विष्णुवर्द्धन ने विक्रम संवत 428 में पुण्डरीक यज्ञ की समाप्ति पर इसे वहाँ स्थापित करवाया था। यह विष्णुवर्द्धन, यशोवर्द्धन का पुत्र तथा यशोराज का पौत्र एवम् व्याघ्रराज का प्रपौत्र था। संभवतः इस लाट या स्तम्भ का संस्थापक विष्णुवर्द्धन प्रसिद्ध गुप्त शासक समुद्रगुप्त का सामन्त था।

त्रेतायुग का एकमात्र किला - बयाना दुर्ग  (विजय मन्दिर गढ़)
त्रेतायुग का एकमात्र किला – बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)

इसके अलावा बयाना से लगभग 11 कि०मी० दूर एक पुराने खेड़े से प्राचीन सिक्कों का एक भंडार मिला है जिसमें प्रसिद्ध गुप्त शासकों- समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’, कुमारगुप्त तथा अन्य गुप्त शासकों के सिक्के मिले हैं। इन सिक्कों की उपलब्धता से पता चलता है कि यह गुप्तकाल में एक समृद्धिशाली नगर था। विक्रम संवत 1012 में रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित ऊषा मन्दिर बयाना दुर्ग की एक प्रमुख विशेषता है।

यह मन्दिर हिन्दू स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस मन्दिर का मुख्य द्वार लाल पत्थरों का बना है। उस पर फूल पत्तियों का सुन्दर अलंकरण है। प्रवेश द्वार के निर्माण में पत्थरों की कटाई तथा जालियों एवम् खम्भों पर पच्चीकारी का अतीव सुन्दर काम हुआ है।

गुलावंशीय सुलतान इल्तुतमिश के शासनकाल में इस भव्य मन्दिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया तथा ऊषा की प्रतिमा खण्डित कर दी गयी। परन्तु मुगल शासन की समाप्ति के बाद 18 वीं शताब्दी ईस्वी में जब बयाना दुर्ग पर जाटों का आधिपत्य हुआ तो पुन: इसे मन्दिर का रूप दे दिया गया ।

त्रेतायुग का एकमात्र किला - बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)
त्रेतायुग का एकमात्र किला – बयाना दुर्ग (विजय मन्दिर गढ़)

बयाना दुर्ग यद्यपि एक साधारण ऊँचाई की पहाड़ी पर बना है तथापि चतुर्दिक पर्वतमालाओं तथा वन सम्पदा से घिरे होने के कारण इस दुर्ग की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से बहुत उपयुक्त है। इसकी विशाल बुजों तथा उन्नत प्राचीर ने भी इसकी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया है।

वर्तमान में यह दुर्ग जीर्ण शीर्ण अवस्था में है तथापि अपने इस रूप में भी यह भव्य और आकर्षक लगता है। किले के भीतर बने भवन हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य कला के सामन्जस्य का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

ऊषा मन्दिर, भीमलाट, राजप्रासाद, सैनिक-आवासगृह तथा अन्य देव मन्दिर आदि जहाँ हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं वहाँ इब्राहीम लोदी के शासनकाल में बनी लोदी मीनार, बारहदरी, सराय सादुल्ला, अकबरी छतरी तथा जहाँगीरी दरवाजा आदि में मुस्लिम वास्तुकला का उत्कर्षी देखा जा सकता है।

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