महात्मा गाँधी का स्वदेश – आगमन
दक्षिण अफ्रीका में 11 वर्ष बिताने के बाद आप फिर स्वदेश के लिए चल दिए। साथ में आपकी पत्नी कस्तूरबा भी थीं। गाँधीजी भारत आने से पहले गोखले से मिलना चाहते थे। जो उन दिनों लन्दन में थे। उन्होंने 18 जुलाई, 1914 को लन्दन होते हुए भारत आने का निर्णय लिया। किसी कारणवश गाँधीजी की गोखले से भेंट नहीं हो पाई।
अतः गाँधीजी कुछ दिन लन्दन रहकर भारत के लिए चल दिये और 19 दिसम्बर, सन् 1914 को भारत पहुंचे। भारत पहुँचकर आप सबसे पहले गोखले से मिलना चाहते थे, जो स्वदेश आ चुके थे। अतः गाँधीजी सबसे पहले पूना जाकर गोखले से मिले।
गोखले ने उन्हें सुझाव दिया कि आप दक्षिण अफ्रीका के फीनिक्स आश्रम की तरह एक आश्रम भारत में स्थापित करें तथा राजनीति में भाग लेने से पहले एक बार भारत भ्रमण करके लोगों को समझें। गाँधीजी ने गोखले के निर्देशों का सम्मान करते हुए कार्य करने का निर्णय लिया। गाँधीजी गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
इसी बीच 19 फरवरी, 1915 को गोखले का देहान्त हो गया। उनके देहान्त से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। गाँधीजी को उनकी मृत्यु का इतना अधिक दुःख हुआ कि उन्होंने एक वर्ष तक नंगे पाँव रहने का संकल्प लिया।
गाँधीजी भारत भ्रमण करते हुए गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शान्ति निकेतन गये। वहाँ के कलापूर्ण सादगी भरे जीवन का आप पर बहुत प्रभाव पड़ा। वहाँ से गांधीजी रंगून गये। रंगून से वापसी पर गाँधीजी गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार जैसी संस्था में गये जो उस समय भारतीय बच्चों का एक आदर्श शिक्षण-संस्थान था।
यहाँ पर स्वामी श्रद्धानन्द ने हरिद्वार में आश्रम बनाकर रहने का निमन्त्रण दिया। गुजरात से भी अनेक निमन्त्रण आये। अन्त में अपनी जन्मभूमि गुजरात में ही आश्रम स्थापित करने का निर्णय लिया।