महात्मा गाँधी द्वारा आश्रम की स्थापना
25 मई, सन् 1915 को अहमदाबाद के निकट कोचख नामक स्थान पर गाँधीजी ने सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। लेकिन बाद में यही आश्रम कोचख से साबरमती आ गया था। आश्रम के नियम बड़े कड़े थे। सुबह चार बजे उठकर प्रार्थना में भाग लेना होता था। प्रतिदिन गीता पाठ होता था।
फिर गाँधीजी प्रवचन करते थे। आश्रम का उद्देश्य था सादा रहन-सहन और उच्च विचार आश्रम की रसोई में जो भोजन बनता था, उसमें मिर्च-मसाला नहीं पड़ता था। इस आश्रम में किसी भी जाति, धर्म या सम्प्रदाय का व्यक्ति प्रवेश पा सकता था। यहाँ मानवता का प्रचार होता था। हरिजन लोग सबके साथ बैठकर खाना खाते थे, यहाँ सूत कातना, पीसना सिखाया जाता था।
लड़कियों के लिए आश्रम में ‘स्त्री निवास’ अलग बना हुआ था। आश्रम की अपनी गोशाला थी। बाद में यहाँ खेती का काम भी आरम्भ हो गया। आश्रम में हरिजनों के प्रवेश से आसपास के गाँवों में विरोध होने लगा। लोगों ने आर्थिक सहायता देना बन्द कर दिया।
लेकिन गाँधीजी ने लोगों से कोई समझौता नहीं किया। उन्हें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास था कि वह उनका मददगार है। उसी समय कोई सेठ तेरह हजार रुपये दे गया। बाद में सब ओर से आर्थिक सहायता आने लगी। इसी वर्ष गाँधीजी को ब्रिटेन और भारत के सम्राट के जन्मदिन पर ‘केसर-ए-हिन्द’ तथा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को ‘सर’ उपाधि दी गई।