महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक डांडी – यात्रा
गाँधीजी ने इस ऐतिहासिक यात्रा का प्रारम्भ 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से किया था जिसका उद्देश्य नमक कानून का उल्लंघन करना था। 21 मार्च को देश भर में नमक का कानून तोड़ने का आदेश दिया गया था। गाँधीजी ने 24 दिन लगातार पैदल चलकर 200 मील की दूरी तय करके 6 अप्रैल को डांडी में स्वयं नमक तैयार किया और कानून भंग किया।
इससे भारतीय जनता में एक बार फिर जागृति पैदा हो गई और आजादी के लिए संघर्ष तेज हो गया। दूसरे दिन व्यापक जन समर्थन देखकर पुलिस ने गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया।
आपकी गिरफ्तारी से भी सत्याग्रह का काम बन्द नहीं हुआ। अंग्रेजी सरकार का गवर्नर जनरल ने मजबूर होकर महात्मा गाँधी को सन्धि के लिए बुलाया। इस प्रकार गाँधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके बाद ही गाँधीजी भारतीय जनता के प्रतिनिधि बनकर 12 मई को लन्दन में होने वाले ‘गोलमेज परिषद्’ में भाग लेने के लिए लन्दन पहुँचे, किन्तु कुछ परिणाम न निकला।
इस बीच लार्ड इरविन का कार्यकाल समाप्त हो गया था। लार्ड विलिंगडन वायसराय बना। उसने देश में दमन का दौर नये जोश से शुरू कर दिया।
गाँधीजी के गोलमेज परिषद् से आते ही 4 जनवरी, 1932 को गिरफ्तार कर लिया गया। कस्तूरबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजों ने ‘फूट डालकर आन्दोलन को कमजोर करो’ वाली नीति अपनाकर दमन-चक्र तेज कर दिया। मुस्लिम नेताओं को अपने पक्ष में करने के कुप्रयास किये। जेल में रहते हुए भी महात्मा गाँधी का ध्यान देश की ओर ही लगा रहता था।
इसी बीच 12 अगस्त, 1932 के दिन अंग्रेजी सरकार ने हरिजनों को शेष हिन्दू समाज से तोड़ने का प्रयास करते हुए उन्हें पृथक् प्रतिनिधित्व देने के निश्चय की घोषणा कर दी। गाँधीजी ने जेल में रहते हुए इसका विरोध किया। महात्मा गाँधी ने यरवदा जेल में एक आम के पेड़ के नीचे 20 सितम्बर, 1932 को आमरण अनशन शुरू कर दिया। छह दिन में ही सरकार अपने निर्णय में परिवर्तन करना मान गई।
30 अप्रैल, 1933 के दिन गाँधीजी ने फिर उपवास द्वारा आत्मशुद्धि करने का निश्चय किया। सरकार ने उपवास प्रारम्भ करते ही गाँधीजी को पूना के पास पर्णकुटी में पहुँचा दिया। श्रीमती कस्तूरबा को भी जेल से रिहा कर दिया गया।
हरिजनों को पृथक प्रतिनिधित्व देने के विरुद्ध अनशन करने के बाद महात्मा गाँधी ने हरिजनों के उद्धार के लिए संकल्प किया। 7 नवम्बर, 1933 को हरिजनों के लिए दौरा करने निकल पड़े। साथ में कस्तूरबा भी थी। 1933 में गाँधीजी ने ‘हरिजन’ नामक एक समाचार पत्र निकाला, जिसके गाँधीजी स्वयं सम्पादक थे। 1933 में विधान सभाओं के चुनाव हुए जिसमें कांग्रेसी नेताओं ने भी भाग लिया। इन चुनावों में कांग्रेस ने शानदार विजय प्राप्त की। इस जीत से कांग्रेसी नेताओं का आत्मबल बढ़ गया।
1988 में महात्मा गाँधी ने सीमा स्थित प्रान्तों का भ्रमण किया वहाँ गाँधीजी ने बादशाह खान और डॉक्टर खान से भेंट की।