महात्मा गाँधी -महायुद्ध के बाद
1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया। भारत से परामर्श लिये बिना ब्रिटिश सरकार ने भारत की ओर से युद्ध की घोषणा कर दी थी। कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने इस प्रश्न पर प्रान्तीय सरकारों को इस्तीफे सौंप दिये थे।
उन दिनों विश्वयुद्ध की चिनगारियाँ देश की सीमा को छू रही थी। जपान और जर्मनी में स्थित श्री सुभाष चन्द्र बोस की वाणियाँ बड़े चाव से सुनी जा रही थी । अंग्रेजी सरकार अपने जीवन की अन्तिम साँसें गिन रही थी। चर्चिल ने क्रिप्स को सुलह के लिए भेजा था किन्तु चर्चिल का क्रिप्स मिशन फेल हो गया ।
कांग्रेस दो दलों में विभक्त हो गया था-गरम दल तथा नरम दल। गरम दल के कुछ नेता शान्ति और अहिंसा का मार्ग छोड़ना चाहते थे। किन्तु महात्मा गाँधी अपने मत पर कायम थे। उनका कहना था – “हिंसा से हम कुछ हासिल नहीं कर पायेंगे। जब-जब हिंसा का सहारा लिया गया है, तब-तब निर्दोष जनता का खून बहा है।” इस बात से कांग्रेस के कुछ नेताओं से गाँधीजी का मतभेद हो गया लेकिन महात्मा गाँधी ने शान्ति का मार्ग नहीं छोड़ा।