पाबूजी राठौड़ का इतिहास

Kheem Singh Bhati
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पण्डित ने आशीर्वाद देकर अपने प्राने का प्रयोजन बताया। राजकुमारी सोढ़ी के विवाह सम्बन्ध का स्वर्ण निर्मित नारियल तथा बहुत-सी मोहरें पाबूजी को मेंट की। तिलक निकाल कर पान का बीड़ा पाबूजी के मुंह में दिया। सभी लोग इस सम्बन्ध से प्रसन्न थे । बूडोजी ने चुटकी लेते हुए पण्डित से कहा – पण्डित, कहीं यह नारियल मेरे लिए तो नहीं था। इस पर पाबूजी ने अपने भाई को झिड़क दिया-दादा, बड़ी मुश्किल से मनुष्य की देही मिलती है। इस देही को पापमय मत करो ।

छोटे भाई के लिए आया हुआ नारियल बड़े भाई को भेंट नहीं किया जा सकता । सरदारों के बीच कहे गये इस कथन ने बूडोजी को रुष्ट कर दिया। वे वहां से उठकर महलों की भोर चल दिये । पण्डित ने विवाह की तिथि निश्चित आने वाली पूर्णिमा को पारिणग्रहरण संस्कार का मुहूर्त निकाला गया । पण्डित बेशुमार उपहार लेकर अपने गांव लौट आया। दोनों ओर विवाह की तैयारियां होने लगीं ।

राजकुमारी सोढ़ी का यौवन निखार पर था | पाबूजी द्वारा सम्बन्ध स्वीकार कर लिए जाने पर वह अत्यन्त प्रफुल्लित थी । पाबूजी ने अपने सगे-सम्बन्धियों को विवाह के लिए ग्रामन्त्रित किया । जगह-जगह पीले चावल भेजे गये | पाबूजी ने अपने प्रधान चांदा को कहा कि हनुमानजी, करणीजी के यहां निमन्त्रण भेजो।

गोरखनाथ के यहां पीले चावल अपेक्षाकृत अधिक भेजो ताकि वे अपनी समस्त जमात के साथ प्रावें । पितरों प्रौर सतियों के यहां निमन्त्रण भेजो ताकि वे रणबांके के विवाह में श्रावें । अपनी बहिन को बुलाने के लिए रथ भेजा गया। किन्तु पाबू ने अपने बहनोई जायल खींची के यहां जानबूझ कर निमन्त्रण नहीं भेजा ।

चांदा और डामा ने पाबूजी को बहुतेरा समझाया कि बहनोई पूज्य होता है, विवाह में अनेक अवसरों पर बहनोई की आवश्यकता होती है। उनके बिना बहुत से नेग-चार प्रधूरे ही रह जायेंगे ।

और फिर सेठ साहूकार लोग भी क्या कहेंगे ? सर्वत्र इस बात की चर्चा बनेगी, जो अपनी प्रतिष्ठा के लिए खराब रहेगी । पर पाबूजी ने एक न सुनी। उन्होंने साफ कह दिया जायल जिंदराज खींची की नजरों से मेरी नजर नहीं मिलती। साफ कह देता हूं वह राठौड़ों की बारात नहीं चढ़ेगा ।

करो रै थे भोला चांदा भोले मन की बात ।
कोई जायल की निजर्या हूँ रै ये म्हारी निजऱ्यां ना मिले ।
चांदा बाघेला थे माने भला मत मान
कोई नहीं तो चढ़ेगो खींची राठोडां री जान में ।

विवाह से कुछ दिन पूर्व उनकी बहिन रथ में बैठ कर आ गई। उससे कलश बंधाया गया। घर द्वार सजाये गये । महल के कंगूरों पर बन्दनवार लटकाई गई । पाबूजी की बारात के लिए हाथी घोड़ों और रथों को सजाया गया। पाबूजी की सवारी के लिए उनकी अश्वशाला में उनके योग्य नवेली घोड़ी नहीं थी। दूल्हे के रूप में वे किसी नई केशर घोड़ी पर चढकर तोरण मारना चाहते थे।

मित्र चांदा ने कहा ऐसी केशर घोड़ी है तो केवल देवल चारगी के यहां है | पाबूजी ने यह सुन चांदा को चारणी के पास भेजा। चांदा ने चारणी को समस्त बातों से अवगत कराया और कहा कि तुम इसके बदले हीरा पन्ना जवाहरात जो चाहो ले लो । चारणी ने कहा कि मेरी घोड़ी मेरी गायों की रक्षा करती है। उसकी रखवाली से मुझे बड़ा सहारा । यदि केशर घोड़ी मेरे घर से चली जायगी तो दुश्मन मेरी गायों को घेर कर ले जायेंगे ।

इसलिए मैं इस घोड़ी को देने में असमर्थ हूं। चांदा ने उसे विश्वास दिलाया कि पाबूजी तेरी रक्षा करेंगे। गौ, ब्राह्मण की रक्षा करना तो उनका धर्म है। राठोड़ अपनी बात के पक्के होते हैं। चांदा से वचन पाकर चारणी ने पाबूजी के लिए घोड़ी दे दी। उसने कहा यह घोड़ी हवा से तेज चलती है। मन से भी ज्यादा चंचल है । सोढों के घोड़े अपनी तेज चाल के लिए प्रसिद्ध हैं किन्तु वे भी इसे न पा सकेंगे। इस विलक्षरण घोड़ी को तुम ले जाओ। मेरी गायों की रक्षा की जिम्मेदारी अब पाबूजी पर रहेगी ।

पाबूजी को चारणी की शर्त स्वीकार थी । घोड़ी देखकर पाबूजी बड़े प्रसन्न हुए। पाबूजी दूल्हे ने सूर्य की तरह चमकता हुग्रा मोड़ उन्होंने सिर पर धारण किया । केशर घोड़ी पर सवार होकर वे सोढों की राजधानी उमरकोट की ओर चलने लगे । घोड़ी की शोभा अपनी निराली ही थी । पाबूजी ने अपने चारण, भाटों को दिल खोल कर नेग देने का आदेश दिया। मोहरों की थैलियां खुल गईं । बहिन-बेटियों को सन्तुष्ट किया गया ।

चादा ने आकर तब पाबूजी से निवेदन किया कि आपके दान पुण्य से सब लोग छक गये हैं, केवल देवल चारगी नेग लेने से इन्कार करती है और खड़ी खड़ी आंसू बहा रही है । न किसी से कुछ कहती है और न किसी की सुनती है । यह सुनकर पाबूजी स्वयं चारणी के पास आये। उन्होंने बड़े आदर के साथ देवल चारगी से कहा- बारठ रानी, इस मांगलिक वेला में तुम रो-रो कर क्यों अपशकुन कर रही हो।

तुम्हें जो चाहिए, कहो । यदि नेग में कमी है तो अभी भी खजाना खुला है। देवल चारणी ने पाबूजी के इन वचनों को सुनकर कहा- हे पाबूजी श्राप सोढों की उमरकोट जा रहे हो । अपने साथ सभी सरदारों को, वीरों को, योद्धाओं को बारात में ले जा रहे हो । पीछे से मेरी गायों की रक्षा का क्या प्रबन्ध किया है ? उनकी रक्षा कौन करेगा ? पाबूजी ने चारणी से कहा मेरे भाइयों और सरदारों के बिना बारात फीकी रहेगी। मेरे आने तक सूर्य भगवान प्रजा की और गढ़ की रक्षा करेंगे ।

बारठ रानी भायां बिन या फीकी लागै जान,
कोई भायां बिन कुरण राचैलो यो पाबूजी री पीठ पर ।।
**
चारण रानी कोट रुखाळो छोड्यो श्री भगवान
कोई संसकिरण छोड्यो ये म्हें रूखाळो सूरज देवता ||

चारणी को इस उत्तर संतोष नहीं हुआ। उसने डामा और चांदा को पीछे छोड़ने के लिए पाबूजी से कहा। किन्तु पाबूजी के लिए डामा और चांदा दायें बायें हाथ की तरह थे । इसलिए उन्हें कैसे छोड़ा जा सकता था। चारणी को पाबूजी ने विश्वास दिलाया कि मेरे बड़े भाई बूडोजी तुम्हारी रक्षार्थ गढ में ही रहेंगे । हे देवल रानी, हम तीन चार दिन उमरकोट से लौट आयेंगे, यदि इस बीच जायल खींची तुम्हारी गायों को घेर ले तो मुझे उमरकोट खबर पहुंचा देना ।

ज्यों ही मेरे कान में खबर पड़ेगी, मैं केशर घोड़ी पर जीए कस कर दौड़ पडू गा । रोटी खाता हुआ भी होऊंगा तो चुल्लू तुम्हारे ही मकान पर आकर करूंगा। हे देवल, यह मेरा पक्का प्ररण समझना | राठौड़ों के प्रण कमी झूठे नहीं होते। श्रावश्यकता पड़ने पर हे देवल भवानी, बीच भांवरें से भी उठकर चला आऊंगा। और आकर तुम्हारी गायों की रक्षा करूंगा । देवल ने पाबूजी की इस शर्त पर नेग लिया और उन्हें विदा किया |

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