पाबूजी राठौड़ का इतिहास

Kheem Singh Bhati
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पाबूजी की बारात चल पड़ी। डामा और चांदा पाबूजी के आगे पीछे घोड़े नचाते चल रहे थे । सूर्योदय हुआ । काले नाग ने मार्ग रोक लिया। काले नाग को देखकर बारात ठिठक कर रह गई । चांदा डामा ने अपनी तलवारें खींच ली । पीछे से पाबूजी श्राये, वस्तुस्थिति को देखकर उन्होंने कहा है डामा, सर्प पाताल नगरी को नाग कहा जाता है और हम भूमिपति होते हैं ।

इसलिए इस काले नाग को दाहिना लेकर बारात को आगे बढायो । पाबूजी के आदेश पर बारात आगे बढी । थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर पर्वत की चोटी पर से नो-हत्थी सिंहनी उतरी | पाबूजी को सिंहनी द्वारा रास्ता रोकना अपशकुन दिखलाई दिया । डामा की सलाह से शकुनशास्त्री सल्ले को बुलाया गया । सल्ले ने शकुन देखकर कहा यदि शकुन को स्वीकार करते हो तो पाबूजी बारात वापिस मोड़ लो और सोढ़ी के साथ विवाह करने के लिए हाथ का खांडा भेज दो।

किन्तु पाबूजी ने पारिणग्रहण की प्रथा के महत्त्व पर ही जोर दिया और कहा कि मैं सिंहनी अथवा ऐसे ही किसी पशुकन से डर कर हिन्दू रीति को नहीं छोडूंगा | राठौड़ों के मुंह पर कलंक नहीं लगाऊंगा | अपनी माता कुंवलादे का दूध न लजाऊंगा | मेरी प्रतीक्षा में सोढ़ी नववधू बनी, विवाह की घड़ियां गिन रही है । यदि मैं मार्ग से वापिस मुड़ जाऊंगा तो वह मुझे कायर गीदड़ समझेगी। उसकी सहेलियाँ उसे तानों से बेध देंगी ।

दुनिया सब प्रकार की मर्यादा मानने से रह जायेगी और संसार में पाबू के नाम की जो दुहाई लगती है, वह आगे से बन्द हो जायगी। इस धरती पर मेरे गीत फिर नहीं चलेंगे और युग युग में मेरा यश नहीं गाया जाया करेगा। इसलिए जब तक मेरे शरीर पर सिर है, मुझ से इस संसार में ऐसी कायरता न हो सकेगी । इस पर डामा सिहनी का सफाया कर देने को तैयार हुआ किन्तु डामा को पाबूजी ने सिंहनी पर शस्त्र प्रहार करने से रोक दिया और कहा कि हम क्षत्रिय सिंह हैं, नारी पर शस्त्र प्रहार नहीं करेंगे ।

डामा ने सिंहनी को ललकार कर वापिस मोड़ना चाहा, तभी सिंहनी झपट कर डामा पर टूट पड़ी। डामा ने उसके प्रहार को अपने ढाल पर रोक कर ऐसा प्रहार किया कि सिंहनी वहां से भाग छूटी। पाबूजी केशर कालमी घोड़ी पर बैठ बारात के साथ आगे बढ़े। उमरकोट थोड़ी दूरी पर ही था । उमरकोट के ऊंचे ऊंचे सफेद भवन नजदीक आते जा रहे थे । कांकड़ में राठौड़ों की बारात की अगवानी करने के लिए बहुत से उमरकोट के लोग एकत्रित हो गये थे।

माडा प्रौर बारात के लोगों का राम जुहार हुआ। डामा को हरी डाली के साथ किले में भेजा। उसके भारी भरकम शरीर और शक्ति को पहचान कर लोग भयभीत से थे । सहेलियों ने गीत गाल गाये । सोढों के नाई ने डामा को अफीम के भण्डार में ले जाकर खड़ा कर दिया क्योंकि अमल की मामूली मनुहार से तो उसकी जीभ को कुछ पता ही नहीं लगा । देखते देखते डामा अफीम के भण्डार को चट कर गया। वहां पड़े हुए पोस्त के छिलके तक भी डामा ने नहीं छोड़े।

लोगों के प्राश्चर्य का ठिकाना न रहा। सभी अवाक् से डामा की ओोर देखते रह गये। मांडा के लोग दांतों तले अंगुलियां दबाने लगे । अफीम से मस्त डामा को भोजन कराया गया। भोजन क्या वह तो उसे कलेवा ही बता रहा था। इसलिए उसे भोजन के भण्डार में ले गये । अब क्या था – भण्डार का समस्त माल डामा के पेट में चला गया फिर भी डामा चुल्लू नहीं करना चाहता था । रसोई साफ हो गई । सोढों की कलई खुल गई। लोग कहने लगे लड़की का वध ही कर डालो ।

डामा जैसे इस बारात में कितने और होंगे क्या कहा जा सकता है ? नाई ने डामा को कहा जो पकाया था वह तो आप खत्म कर गये अब और क्या दें | डामा ने बड़ी लापरवाही से कहा, अभी तो सच पूछो तो कलेवा भी नहीं हुआ है। सोढों में खलबली मच गई। जिस कन्या के विवाह के शुरू में ही सोढों की हेठी होने लगी है, उस कन्या का तो वध ही कर देना अच्छा है । डामा ने जलती में घी डाला ।

कहने लगा अभी हुआ ही क्या है ? बारातियों में सबसे कम खाने वाला मैं ही हूं । पेटू डामा की बात सुन कर सभी हंसी से लोटपोट हो गये । राठौडों के साथ सम्बन्ध करके सोढों में पछतावा उभरता जा रहा था । पाबूजी की बारात सोढ़ीजी के बाग में ठहराई गई और बाकी बारात सफेद तम्बुओं में उतरी। पाबूजी की केसर घोड़ी को देखकर लोगों में सराहना होने लगी। उनके साले केसर घोड़ी के साथ अपने घोड़े को दौड़ाना चाहते थे।

किन्तु पाबूजी ने अपनी घोड़ी को थकी जान आनाकानी की । तब सोढों ने कहा बहनोई जी, श्रापकी घोड़ी थक गई है तो हमारे नो लाख वाले मूल्य वाले घोड़े पर सवारी कीजिये | पाबूजी ने तत्काल उत्तर देते हुए कहा-ग्रापके घोड़े पर तो राव उमराव ही चढ़ेंगे । मैं तो मेरी केसर घोड़ी पर ही सवारी करूंगा । सोढों को कुछ ताव हो श्राया। उन्होंने शर्त रखी कि जिसकी घोड़ी हार जाय, वह अपनी घोड़ी चारण भाट को बस्सीस में दे देगा | पाबूजी ने यह शर्त स्वीकार की। साले बहनोई हाथ में हाथ डाले घोड़े पर चढे ।

दौड़ हुई | केशर कालमी ने सब को धूल चटा दी । सोढों के टट्टू चारणों को दे दिये गये । संध्या का समय निकट था। तोरण पर जाने का वक्त हो गया था। पाबूजी को सोने का सेहरा बांध कर सवा लाख की कलंगी लगा कर दूल्हा बनाया गया । गाजे बाजों के साथ कालमी घोड़ी पर चढ कर पाबूजी सहेला के लिए चले। घोड़ी नाचती जा रही थी। धींगड धींगड विवाह के ढोल बज रहे थे ।

घोड़ी का रिमझिम रिमझिम नृत्य सभी को सुहावना लग रहा था। हरे लाल रेशम की जाजिम बिछी हुई थी। चौक पूरे हुए थे। सहेले में बड़ा रंग जमा हुआ है। राठौड़ों और सोढों के ठाठबाठ हो रहे हैं। पण्डित के लड़के ने देवताओं की पूजा की। सूरजमल सोढ़े ने पाबूजी के तिलक किया। तोरण मारने की तैयारी हुई | पाबूजी तोरण मारने के लिए यथास्थान गये। उन्होंने देखा तोरण गगनचुम्बी गढ़ के कंगूरों पर बंधा हुप्रा है |

पाबू ने घोड़ी को थपथपाया। उसे पुचकार कर लाड़ प्यार करते हुए कहा हे कालमी घोड़ी ! तू छलांगों में जीत गई तो तेरे खुरों में मेहंदी लगवाऊंगा, पांवों में रत्न जड़ित घुघरू की माला डलवाऊंगा, गले में सोने की माला पहनाऊंगा और चमकता हुआ सेहरा मस्तक पर लगाऊंगा, इसलिए हे घोड़ी राठौड़ों की प्रतिष्ठा को बनाये रखना और यदि हार गई तो चारण भाटों को बख्श दूंगा। तभी घोड़ी ने कहा हे पाबू, तू यदि मेरी पीठ पर थाप मारे तो मैं चन्द्रमा और सूर्य के कंगूरों पर स्थित तोरण को भी मरवा दूं ।

हे पाबू मेरी पीठ पर भली प्रकार से जमे रहना । पाबू ने नृत्य करती हुई घोड़ी की पीठ ठोंकी । थाप लगते ही वह केसर कालमी उछल पडी और उछलती हुई उसने सोढों के गढ की दीवार को गिरा दिया और गगन चुम्बी गढ के कंगूरों पर अपने चिन्ह अंकित कर दिये । केसर ने कहा हे पाबूजी आपको तोरण मारने का चाव था, श्राप जी भर कर तोरनांकित चिड़ियों को गिन गिन कर मार लीजिये ।

केसर ने अच्छी प्रकार तोरण मरवा दिया। चांदा डामा ने यह देख अपनी मूंछों पर ताव दिया। सभी बाग बाग हो गये। पाबूजी के इस कार्य से सोढ़ीजी की छाती फूल गई ।

चांद डामै फेरया छै बो मूंछां ऊपर हाथ
कोई बाग बाग होग्या छै रै राठोडै कुल रा मानवी |
नीचा तो झुकाया रे रीसालू सोढां सीस
कोई पाबू पैरं कारजिये र सोढ़ी की छाती फूलगी ।

पाबूजी की सास ने प्रारती की, औरतें प्रारती में दही चढाने लगीं। सोढों के घर की नाटिया पाबूजी के बदन को मापने लगी। तभी पाबूजी ने कहा मेरे बदन का माप न कीजिये । हम धरा के यति हैं, यतियों के मत की मान मर्यादा रखते हैं, किसी नारी के अंचल से हमारे वस्त्र का स्पर्श नहीं होता। सास ने यह सुन उनके चेहरे पर चावल बिखेर दिये । तोरण का नेग सम्पन्न हुआ।

विवाह मण्डप के उपकरण जुटाये जाने लगे। गोधूलि का लगन था। जोशी ने वेदी पर कलश की स्थापना की। गणपति का पूजन हुआ। सोढों की कन्या सात सहेलियों के साथ पाबू के दाहिने अंग श्रा बिराजी । सोढों का परिवार हाथ जोड़े खड़ा था । कन्यादान के साथ राजा ने नौ मन स्वर्ण देने का संकल्प किया । सोढ़ी की मां ने सवा मन सोना दान में दिया, भाई भावज ने पुष्कल अन्न धन का दान किया।

काका ताउम्रों ने बहुत-सी मोहरें दान में दीं। गायें दी गईं। सभी लोग कन्या दान की सराहना करने लगे। प्राज सोढों के घर मानन्द बरस रहा । पाबूजी राठौड़ उनके यहाँ प्राकर चंवरी चढे हैं। पण्डित ने पाणिग्रहण करवाया | पाबूजी पीछे और सोढों की लाडली कन्या प्रागे हुई। पहले भंवर में वरवधू के हृदय मिल कर एक हो गये।

दूसरे फेरे में वरवधू दोनों के प्रारण मिल कर एकाकार हो गये । राठौड़ों और सोढों का सम्बन्ध घुलमिल कर एक हो गया ।

पैले फेरे जुड़ग्या छै बनडे बनड़ी का जीव
कोई सोढ़ां अर राठौड़ा का वे बाला सगपरण जुड़ गया ।
दूजे फेरे दूद नीर ज्यू मिल्या दोयनड़ा जीव,
कोई सोढ़ां भर राठौड़ां का बै गाढा सगपण घुळ गया ।

इधर अचानक ही केसर घोड़ी हिनहिनाई और उसने अपने फौलादी पादबन्धनों को तोड़ डाला | पाबू ने चांदा को भेजा कि तुम जाकर कालमी को श्राश्वस्त करो । उसने यह उत्पाद क्यों मचाया । चांदा ने केशर से कहा पाबू ने दो भंवर ले लिये दो और बाकी हैं। तू रंग में भंग न कर | यदि पाबूजी तुम्हारी दूसरी हिनहिनाहट सुन लेगा तो वचनबद्ध वह भंवर को अधबिच छोड़कर उठ पड़ेगा ।

हे केशर, विघ्न न डालो । सोढों की स्त्रियां मुझे गालियां देंगीं। इस पर केशर कालमी कहने लगी हे चांदा, जिन गायों का मीठा दूध मैंने पीया था, उन्हीं को जायल खींची घेर कर ले जा रहा है। मैं कड़ कड़ दांत चबा रही हूँ । हे चांदा, मेरे मन की बात सुनिये, देखो यह देवल भवानी चली मा रही है । उसने सोढों के दरवाजे प्राकर करुण पुकार मचाई है कि पाबूजी श्राप तो सोढ़ीजी से पारिणग्रहरण करके रीफे हैं, और उधर खींची मेरी गायों से रीझा है।

अब तुम्हीं बताओ वह देवल भवानी यहां किस निमित्त श्राई है ? चांदा वेदी के पास गया और कहने लगा – क्या बात सुनाऊं ? खींची देवल चारणी की गायें घेर कर ले गया है। इतना सुनते ही पाबूजी ने अपने चोगे की डोरी भड़काई, पाणिग्रहरण छोड़ दिया और फेरों के बीच ही उठ खड़े हुए।

उठते हुए पाबूजी का सोढी ने अंचल पकड़ लिया। वह कहने लगी, हे पाबू, मेरे पिता ने कौनसा अपराध किया था ? मेरी जन्मदात्री माता का क्या कसूर था ? मुझ में कौनसा खोट तुम्हें दिखलाई दिया ? पाबूजी ने कहा – हे सोढीजी, न तो कोई तुम्हारे पिता ने ही अपराध किया है और न तुम्हारी जननी से ही अपराध हुआ । हे सोढीजी, भाप में कोई दोष है ही नहीं। इस पर सोढीजी ने कहा बीच भंवर फिर आप क्यों उठे हो ?

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