पाबूजी राठौड़ का इतिहास

Kheem Singh Bhati
53 Min Read

मैं आधी कुमारी और प्राधी विवाहित रह गई। पाबूजी इस पर कहने लगे, हे सोढीजी, खास अपराध तो मेरा है, वचनबद्ध होने के कारण मैं तीसरे भांवर में ही उठकर जा रहा हूं। जिस प्रकार मर्दों का पिता एक ही होता है, उसी प्रकार उनका वचन भी एक ही होता है । भांवरों की अपेक्षा धर्म को बड़ा कहा गया है । यह धरती और आकाश वचनों से बंधे अपना कार्य कर रहे हैं। पवन, पानी, सूर्य और चांद भी वचनों से परे हैं। वचनों से बढ़कर इस संसार में दूसरा कोई नहीं है। हे सोढ़ी, देवल चारणी मेरे समीप बसती है, खींची उसके पीछे पड़ा है।

जब बारात चढ़ रही थी, देवल चारणी ने गायों की रक्षार्थ डामाजी को मांगा था। लेकिन मैं डामा को ले प्राया और उसे सत्य वचन देकर ग्रा गया। मैंने कहा था कि आवश्यकता पड़ने पर मैं बीच में भांवर छोड़ दूंगा और तुम्हारी गायों की रक्षा करूंगा। हे सोढ़ी, मैं वचनबद्ध हूं। वचन की रक्षा के लिए मैंने अपने सिर की बाजी लगा दी है। सोढ़ी ने कहा, पाबूजी मैं अपने पिता की फौज भेज कल ही खींची को पकड़ मंगाऊंगी।

आप यहां बैठ मेरे महलों में चोपड़ खेलिये। यह सुन पाबूजी कहने लगे सोढ़ी, ऐसा करने से मेरे शौर्य पर कलंक लगेगा। तुम्हारी फौजों के बल पर मैं अपनी मूंछों पर ताव नहीं दे सकता । संसार के लोग मेरी निन्दा करेंगे । मुझ पर व्यंग्य करेंगे । पाबू स्वयं तो ससुराल में मौज कर रहा है और सोढों के अनुचरों को गायों की रक्षार्थ भेज दिया है। लोग कहेंगे पाबू सोढी का साथ नहीं छोड़ सका।

इस पर सोढी ने कहा- हे रणबंके पाबू ! यदि ऐसी बात है तो अवश्य गायों को रक्षा के लिए चढो और जाते हुए अपने हाथ का कोई स्मृति चिन्ह देते जाओ | पाबूजी ने तब कहा- हे सोढीजी, यदि जिन्दा रहे तो तुमसे प्रा मिलेंगे और यदि मर गये तो ऊंट सवार मेरे शिरोभूषण और मेरी पाग ला देगा ।

यह कह कर पाबूजी अपने चोगे को ठीक कर चल पड़ा | पाबू की सास सालियों ने गढपति के चोगे को पकड़ कर भूल गईं और कहने लगीं हे पाबूजी ! हमारी बच्ची में अवगुण हो तो हमें बताओ, हम अपनी दूसरी लड़की का विवाह तुम्हारे साथ कर दें। इस पर पाबू ने कहा तुम्हारी लड़की संसार में दूध की भांति उज्ज्वल है। हे सास, अवगुण तो मुझ में है जो मैं देवल को अपना सर बेच प्राया हूं ।

विवाह के चोगे की तनियों को सम्भाल कर गढाधीश पाबू चल पड़ा | पाबू ने चलते समय जुहार किया और कहा कि यदि जिन्दा रहे तो अपने रंगीले ससुराल ग्रा पहुंचेंगे ।

वीरवर डामा और चांदा छाया की भांति युद्ध में पाबूजी के साथ थे । वे अपना जौहर दिखा रहे थे । बढ़ चढ़ कर उनकी तलवारें चल रही थीं। घमासान युद्ध अपनी चरमावस्था पर था। खींची पाबू के आगे ठहर न सका। मुंह लटकाये वह अपने मामा के पास सहायतार्थ भटनेर पहुंचा। अपने भांजे को निराश देख मामा ने धैर्य बंधाया और जायल को बैठने के लिए कहा।

खींची ने मामा को उकसाते हुए कहा मेरे बैठने की जाजम तो पाबू का डामा ले गया। जब तक डामा से प्रतिशोध न लेलूंगा तब तक बैठना कहां ? मामा ने अपने भांजे को पाबूजी की सुरक्षित गाय को घेर कर जो अन्याय किया था, उसके लिए धिक्कारा । खींची ने इस पर झूठी बातें बतलाकर सारा दोष पाबू पर ही डाला और कहने लगा डामा ने मेरे सम्पूर्ण परिवार को मौत के घाट उतार दिया है।

उसके तीरों के सम्मुख ठहरना मुश्किल हो गया। हमारे पांव उखड़ गये । खींची ने युद्ध की भयंकरता का वर्णन बढा चढा कर किया। यह सब सुन भारी क्रोध से लाल हो गया। डामा को आवश्यक दण्ड देने का मामा ने संकल्प किया। अपने सरदारों को युद्ध के लिए एकत्रित कर बीड़ा डाला और ऐलान किया कि जो कोई वीर डामा को युद्ध में पराजित
कर देगा। उसे भरे दरबार में पाग पहनाई जायगी।

सभा में सन्नाटा छा गया । तब भाटी राजा ने कहा, क्या मैं यह समझ लू कि ग्राज धरा क्षत्रिय विहीन हो गई है। क्या भाटियों की नारियां वीर प्रसविनी नहीं रहीं। यह सुन ज्ञानसिंह भाटी को जोश श्रा गया और उसने डामा को पकड़ने का बीड़ा उठाया । युद्ध के नगाड़े बजने लगे । भाटियों की विशाल वाहिनी ने पाबूजी की वीर भूमि में प्रवेश किया। ज्ञानसिंह घोड़े पर सवार हो पाबूजी के महलों में पहुंचा। उचित अभिवादन के पश्चात् उसने पाबूजी से कहा–श्राप डामा के रूप में सिंह पाल रखा है।

श्राज मैं उसके दन्त नख तोड़ कर रहूंगा । डामा इस समय सो रहा था, इसलिए पाबूजी ने उत्तर दिया कि खींचियों की लड़ाई में तो डामा कभी का काम या चुका। यहां डामा कहां है । इस पर ज्ञानसिंह बोला, पाबूजी झूठ न बोलिये । आप छिपाने की चेष्टा न कीजिये । मैं डामा को मारे बिना नहीं रहूंगा | पाबूजी ने कहा है भाटी सरदार, जरा धीरे धीरे बोल, अन्यथा तू सोये सिंह को जगा देगा ।

इतना सुनते ही डामा की नींद खुल गई । वह भूखे सिंह की भांति कच्ची नींद में ही उठ खड़ा हुआ। उसने ज्ञानसिंह भाटी को ललकारा । डामा की सिंह गर्जना सुनकर भाटी के पांव से धरती खिसक गई । जैसे तैसे छाती कड़ी करके वह लड़ने को तैयार हो गया। मामूली युद्ध में डामा के हाथ से ज्ञानसिंह मारा गया। किन्तु ज्ञानसिंह अकेला न था। उसके पीछे चींटियों की नाल की भांति भाटियों की एक लाख फौज श्रा पहुंची।

पाबूजी ने अपने एक राईका को आदेश दिया कि ऊंटनी पर सवार होकर भाटियों की फौज और उनके मोर्चे को देखकर प्राओो । राईका ने शत्रु की सेना का पूरा विवरण पाबूजी के सामने रखा और कहा कि शायद डामा भाटियों के सम्मुख टिक नहीं पायेगा | पाबूजी वस्तुस्थिति को समझ कर अपने स्थान पर श्रा गये । चांदा ने डामा को समझाया कि हम पहाड़ की प्रोट में हो जायें- क्योंकि खुले में हम भाटियों से जीत नहीं सकेंगे।

डामा का वीरत्व जाग उठा । उसने कहा श्राप कैसी भोली भाली बातें कर रहे हैं । यदि ऐसी कायरता दिखायोगे तो क्या आप अपनी कमालदे जैसी माता का दूध नहीं लजाश्रोगे | पाबूजी ने फिर समझाया कि डामा यहां किसको तो ढाल बनायोगे और कहां मोर्चा लोगे । डामा ने विश्वास से कहा छाती की ढाल और मूंछों के मोर्चे बनाकर युद्ध में अमर हो जायेंगे।

फिर क्या था, घमासान युद्ध छिड़ गया। पाबू की तलवार झेलने वाला कोई नहीं था। उनकी घोड़ी ने युद्ध स्थल में रणचण्डी की तरह प्रलय मचा दिया। खून की नदियां बह गईं। भैरव प्रौर जोगनियां मृतकों पर नाचने लगीं। पाबूजी, चांदा और डामा ने शत्रुनों की प्रसंख्य सेना को धराशायी कर दिया और अन्त में स्वयं भी खेत रहे ।
पाबू के लिए स्वर्ग से विमान आया।

चांदा डामा के लिये पालकियां ग्राईं । तलवार की जीत जायल खींची की हुई और यश की जीत हुई पाबूजी की। तलवार से जीतने वालों के तो धरती पर केवल निवास स्थान बनेंगे, किन्तु यश विजेताओं की पूजा देवताओं की तरह होगी । उनकी पाषाणमयी प्रतिमाएं बनेंगीं ।

राठौड़ों का पूरा खानदान ही इस युद्ध में काम श्राया । बड़े माई बूडोजी भी इस युद्ध में मारे गये । पाबूजी के सिरोभूषण तथा अन्य चिन्ह लेकर दूत सोढीजी के पास पहुंचा । सोढीजी पहले ही प्रशुभ से डरी हुई थी । उसे भयानक स्वप्न प्राया था जिसमें उसने अपने प्रापको विधवा वेशभूषा में देखा था | पाबूजी की मृत्यु का समाचार उसने छाती पर वज्र रखकर सुना प्रौर वीर पत्नी की भांति पाबूजी के शव को गोद में लेकर वह प्राग में बैठ गई ।

बूड़ोजी की पत्नी के गर्भ में एक बालक पल रहा था। इसलिए सती होने से पहले पेट चीर कर बालक को बाहर निकाला गया । यही बालक आगे चलकर वीर नानड़िया कहलाया, जिसने भाटी का सिर काटकर अपने पिता और काका का वैर शोधन किया ।

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